सक्रिय ध्यान और निष्क्रिय ध्यान : ओशो के तरीकों का अंतर
जब हम ध्यान (Meditation) शब्द सुनते हैं, तो प्रायः मन में बैठने, आंखें बंद करने और शांत रहने की छवि उभरती है। यह तरीका निष्क्रिय ध्यान कहलाता है। लेकिन ओशो ने ध्यान को केवल बैठने या चुप रहने तक सीमित नहीं माना। उन्होंने मनुष्य की आधुनिक परिस्थिति और बेचैन मन को देखते हुए सक्रिय ध्यान की एक नई विधा प्रस्तुत की।
1. सक्रिय ध्यान (Active Meditation) क्या है?
सक्रिय ध्यान वह है, जिसमें शरीर, श्वास और भावनाओं को गति दी जाती है।
- इसमें पहले चरण में दौड़ना, कूदना, गहरी और असंगत श्वास लेना, चीखना या रोना–जैसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
- ओशो के अनुसार, आज का मनुष्य इतना दबा हुआ और तनावग्रस्त है कि यदि वह सीधे शांति में बैठने की कोशिश करे तो भीतर का दबाव उसे और अधिक अस्थिर कर देगा।
- इसलिए पहले शरीर और मन को हिला-डुलाकर, दबे हुए भावों को बाहर निकालकर भीतर से हल्का होना आवश्यक है।
- ओशो की प्रसिद्ध डायनेमिक मेडिटेशन (Dynamic Meditation), कुंडलिनी मेडिटेशन और नादब्रह्म आदि इसी श्रेणी में आते हैं।
👉 सक्रिय ध्यान में ऊर्जा का विस्फोट और शुद्धिकरण होता है।
2. निष्क्रिय ध्यान (Passive Meditation) क्या है?
निष्क्रिय ध्यान का अर्थ है – पूर्ण शांति और साक्षीभाव में ठहरना।
- इसमें शरीर स्थिर होता है, आंखें बंद होती हैं और साधक केवल भीतर की चेतना को देखता है।
- यह परंपरागत ध्यान का रूप है – जैसे विपश्यना, ज़ेन मेडिटेशन या साधारण साक्षीभाव में बैठना।
- निष्क्रिय ध्यान का उद्देश्य है मन की तरंगों को शांत कर, शुद्ध अस्तित्व को अनुभव करना।
- लेकिन ओशो कहते हैं कि जब तक आप भीतर का बोझ नहीं उतारते, तब तक निष्क्रिय ध्यान में बैठना कठिन है।
👉 निष्क्रिय ध्यान में शून्यता और मौन का अनुभव होता है।
3. दोनों में संबंध
- ओशो ने समझाया कि सक्रिय ध्यान, निष्क्रिय ध्यान की तैयारी है।
- पहले चरण में आप सक्रिय ध्यान से भीतर की सारी अशांति बाहर निकालते हैं।
- जब भीतर कुछ भी दबा हुआ नहीं रहता, तब निष्क्रिय ध्यान सहज और आनंदपूर्ण बन जाता है।
- इस तरह, सक्रिय और निष्क्रिय ध्यान एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
4. ओशो का दृष्टिकोण
ओशो का कहना था :
“पहले खुद को पूरी तरह खाली करो – नाचो, कूदो, रोओ, हंसो, चिल्लाओ – फिर मौन को घटने दो। तभी ध्यान एक जीवंत अनुभव बनेगा।”
निष्कर्ष
- सक्रिय ध्यान: ऊर्जा का विस्फोट, शुद्धिकरण और भावनाओं का विमोचन।
- निष्क्रिय ध्यान: शांति, साक्षीभाव और मौन का अनुभव।
- दोनों मिलकर साधक को गहन ध्यान की ओर ले जाते हैं।