विचारों का पर्दा: हम वास्तविकता को क्यों नहीं देख पाते?

विचारों का पर्दा: हम वास्तविकता को क्यों नहीं देख पाते?

क्या आपने कभी गौर किया है कि हम जीवन को वैसा नहीं देखते जैसा वह है, बल्कि जैसा हमारा मन हमें दिखाता है वैसा देखते हैं?

ओशो कहते हैं –

“हमारी आँखें तो साफ हैं, लेकिन उन पर विचारों का धुंधला पर्दा पड़ा है। इसी कारण हम सत्य को, वास्तविकता को, अस्तित्व की सुंदरता को देखने से वंचित रह जाते हैं।”

तो आखिर यह विचारों का पर्दा क्या है, और यह क्यों हमें अंधा बना देता है?


1. विचार क्या हैं?

विचार सिर्फ शब्द नहीं हैं।
वे हमारी पूरी conditioning हैं –

  • बचपन से सीखी बातें
  • समाज और संस्कृति के संस्कार
  • धर्म, राजनीति, शिक्षा और परंपराओं का बोझ
  • अनुभवों और स्मृतियों का संचय

ये सब मिलकर एक मानसिक चश्मा बना देते हैं। और हम हर चीज़ को उसी चश्मे से देखते हैं।


2. विचारों का पर्दा – वास्तविकता पर आच्छादन

कल्पना कीजिए, आपने धूल से भरा चश्मा पहना हुआ है।
आप जो भी देखेंगे वह धुंधला होगा।

ओशो कहते हैं –
“विचार धूल हैं। और जब मन में विचार लगातार चलते रहते हैं, तब आप वास्तविकता को वैसा नहीं देख पाते जैसी वह है, बल्कि वैसा देखते हैं जैसा आपके विचार चाहते हैं।”

यानी वास्तविकता हमेशा यहाँ है – पेड़, आकाश, फूल, पक्षी – सब जीवन की मौन संगीत में गा रहे हैं।
लेकिन विचारों का पर्दा बीच में आ जाता है।


3. विचार क्यों चिपके रहते हैं?

  • मन का भय: अगर विचार रुक जाएँ, तो मन को लगता है कि उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
  • अहंकार का सहारा: हमारी पहचान ही विचारों पर टिकी है – “मैं हिंदू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं अमीर हूँ, मैं गरीब हूँ।” ये सब विचार हैं।
  • सुरक्षा की आदत: विचार हमें झूठा सुरक्षा-भाव देते हैं, जैसे अंधेरे में टॉर्च की रोशनी। लेकिन वास्तव में यह हमें अंधा ही बनाए रखते हैं।


4. ध्यान – पर्दे को हटाने का मार्ग

ओशो कहते हैं –

“ध्यान का अर्थ है विचारों के पीछे न भागना। जब आप केवल देखते हैं, गवाह बन जाते हैं, तब विचारों का पर्दा गिरने लगता है।”

कुछ ध्यान विधियाँ:

  1. साक्षीभावजो भी हो रहा है, बस देखो।
  2. नादब्रह्म ध्यान गुनगुनाते हुए विचारों को धीमा करना।
  3. कुंडलिनी ध्यानशरीर की ऊर्जा को मुक्त कर मन की परतें हल्की करना।

धीरे-धीरे विचार शांत होते जाते हैं, और एक निर्मल आकाश प्रकट होता है।
वह आकाश ही वास्तविकता है।


5. वास्तविकता – जैसे वह है

जब विचारों का पर्दा हटता है, तब हम चीज़ों को वैसे देख पाते हैं जैसी वे वास्तव में हैं।

  • फूल सिर्फ फूल है, उसमें कोई नाम, कोई परिभाषा नहीं।
  • पेड़ सिर्फ पेड़ है, उसमें कोई धार्मिक प्रतीक नहीं।
  • आप सिर्फ एक शुद्ध चेतना हैं, न कि कोई नाम या उपाधि।

ओशो कहते हैं –

“जब तुम विचारों से मुक्त होते हो, तभी अस्तित्व तुम्हें अपना असली रूप दिखाता है। तभी जीवन पहली बार जीवित लगता है।”


6. एक छोटा प्रयोग

अभी आप आँखें बंद करें…
सिर्फ पाँच मिनट के लिए।
जो भी विचार आ रहे हैं, उन्हें आते-जाते देखें।
कोई रोकथाम न करें, कोई निर्णय न दें।
बस दर्शक बने रहें।

धीरे-धीरे आप पाएंगे – विचारों की पकड़ ढीली होने लगी है।
और जैसे ही पकड़ ढीली होती है, बीच-बीच में अंतराल आता है –
एक क्षण जब कोई विचार नहीं होता।
वह क्षण ही वास्तविकता की झलक है।



मित्रों,

हम वास्तविकता को इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि विचारों का पर्दा बीच में है।
लेकिन ध्यान और सजगता के द्वारा यह पर्दा हट सकता है।
और जैसे ही यह पर्दा हटता है, जीवन नया, ताज़ा और अद्भुत हो जाता है।

ओशो कहते हैं –

“सत्य कहीं बाहर नहीं है, वह यहीं है। बस विचारों के पर्दे को हटाओ, और तुम देख लोगे।”


अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो, तो इसे ध्यान में उतारें।
पढ़ने से ज्यादा जरूरी है जीना।
ओशो आनंदवन के साथ जुड़े रहें, हम और भी गहराई के विषयों पर साथ चलेंगे।

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